Wednesday 17 June 2020


मेरी माताजी मुझे कई बार अपने साथ बाजार ले कर जाती हैं।
मुझे उनका सामान उठाते हुए बिल्कुल कोल्हू के बैल जैसा लगता है, पर माँ को लगता है कि उनकी इस सीख से मेरी तकदीर बन जाएगी।
कभी-कभी मैं उन्हें मक्खन लगाने की कोशिश करता हूँ, और कभी बीमारी का बहाना भी करता हूँ, पर माँ के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
वापिस आ कर वे मुझे एक आम पुरस्कार में देती है। उन्हें लगता है कि  मुझे मेहनत का फल मिल गया, पर मुझे वह ऊंट के मुंह में जीरा लगता है।
कभी कभी मैं सब्जी चुनने में माँ का हाथ भी बँटाता हूँ। तब माँ प्यार से मेरे गाल थपथपाती हैं, तो मैं खुशी से फूला नहीं समाता!

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