Tuesday, 29 September 2020

भारत के सामने वोडाफोन ने टैक्स मध्यस्थता का केस जीता 

कर विवाद में टैक्स के रु. १२,००० करोड़ और जुर्माने के रु. ७९०० करोड़ शामिल थे 

दी हेग, सितम्बर २८: टेलेकोम दिग्गज वोडाफोन ग्रुप ने भारत की रु. २०,००० करोड़ की भारी कर मांग के विरुद्ध शुक्रवार को द परमानेन्ट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन, द हेग, द नीदरलैंड में केस जीत लिया। यह समाचार को समझने के लिए, हमे पहले कुछ शब्दों को समझना होगा। 

आर्बिट्रेशन/ मध्यस्थता : जब लोग अपना केस कोर्ट में नहीं ले कर जाना चाहते, तब वे अपने मुद्दे को वैकल्पिक विवाद समाधान (Alternate Dispute Resolution), जिसे आर्बिट्रेशन या मध्यस्थता के रूप में जाना जाता है, से सुलझाने का प्रयास करते है। एक निष्पक्ष इंसान, जिसे मध्यस्थ या आर्बिट्रेटर कहा जाता है, वह विवाद को निपटाने का प्रयास करता है।   अगर मामला अदालत ले जाया जाये तो, मध्यस्थ द्वारा लिया गया फ़ैसला, अदालत में भी लागू होता है। 

द्विपक्षीय निवेश संधि ( Bilateral Investment Treaty (BIT)): यह दो देशों के बीच एक समझौता है जो एक दूसरे के देशों में व्यापार करने के लिए नियम तय करता है।

उचित और न्यायसंगत उपचार (Fair and Equitable Treatment): BIT सुनिश्चित करता है कि एक विदेशी कंपनी के साथ उचित व्यवहार किया जाएगा और घरेलु कंपनियों की तुलना में गैर या भेदभावपूर्ण व्यव्हार नहीं किया जायेगा। 

ऑफशोर ट्रान्सेक्शन : ऐसा व्यवसाय जो किसी देश की सीमाओं के बाहर होता है।  उदाहरण के तौर पर, यदि एक भारतीय नागरिक इंग्लैंड में एक कंपनी खरीदता है, इसे ऑफशोर ट्रांजैक्शन कहा जाता है।

टैक्स: सरकार को आधारभूत संरचना, रक्षा, सरकारी कर्मचारी भुगतान, आदि सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए धन की आवश्यकता होती है।  इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए सरकार टैक्स लगाती है। अगर आप भारत में पैसा कमाते है, तो आपको टैक्स भरना है (यदि किसी व्यक्ति की आय निश्चित रकम से कम है तो उसे टैक्स में छूट दी जा सकती है।)

२००७ में, वोडाफोन समूह की नीदरलैंड की सहायक कंपनी ने एक भारतीय कंपनी हचिसन एस्सार को $११.१ बिलियन में खरीदा। लेकिन यह लेन-देन सरल नहीं था। वोडाफोन ने हटचिंसों टेलेकम्युनिकशन इंटरनेशनल लिमिटेड, होंगकोंग से, इसकी केमैन द्वीप स्थित सहायक कंपनी CGP इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स खरीदने के लिए  समझौता किया।  CGP इन्वेस्टमेंट होल्डिंग्स के पास वोडाफोन के ६७% शेयर थे। चूँकि यह सौदा भारत में नहीं हुआ, यह एक ऑफशोर ट्रान्सेक्शन था। मगर जो कंपनी खरीदी गयी थी वह भारतीय थी, इसलिए यह सौदा भारतीय कर प्रणाली के दायरे में पड़ता है। भारत सरकार ने वोडाफोन पर करचोरी का मुक़दमा दायर किया और  रू.२०,००० करोड़ के टैक्स और पेनल्टी भरने के लिए कहा। वोडाफोन ने भारत के दावे का मुकाबला किया और द परमानेन्ट कोर्ट ऑफ़ आर्बिट्रेशन, द नीदरलैंड में भारत के खिलाफ मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू की। 

परमानेंट कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन, नीदरलैंड्स ने भारत और नीदरलैंड के बीच द्विपक्षीय निवेश संधि, जो विदेशी कंपनियों के निष्पक्ष और न्यायसंगत व्यवहार की बात करती है, के आधार पर फैसला सुनाया कि भारत का इस सौदे पर कोई कर दावा नहीं है। अदालत ने भारत को वोडाफोन को रु. ८५ करोड़ (४५ करोड़ रुपए,  जो वोडाफोन ने पहले से ही कर स्वरूप चुकाए थे और ४० करोड़ अदालती कार्यवाहियों की राशि खर्च के तौर पर)। भारत सरकार सिंगापुर उच्च न्यायालय में इस फैसले के ख़िलाफ़ अपील कर सकती है।

  

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