जब हम पहले आते स्कूल
माँ बाबा को जाते भूल
टीचर हमको लाड लड़ाती
कितने खेल हमें खिलातीं
जब हम आते पहली में
कितना बतियाते सेहली से
वो ऊपर से आँख दिखाती हैं,
पर अंदर से मुस्काती हैं
जब हम आते छठी में
हो जाते थोड़े हठीले
बस्तों के बोझ बढ़ जाते हैं
और टीचर हमें बचाते हैं
देखो अब तो दसवीं है
कमर सबने कस ली है
दिन रात आँखें जलाते हैं,
ये नैया पार कराते हैं
फिर आता दिन जाने का
इन सब से दूर हट जाने का,
जब दुनिया से टकराते हैं,
तब टीचर, बहुत याद आते हैं.
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