चेन्नई, 4 अक्टूबर: वन विकास की मियावाकी प्रणाली जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी के दिमाग की उपज (मूल विचार) है। इस प्रणाली में देशी पेड़ों को एक दूसरे के बहुत करीब लगाया जाता है, उनके बीच में न्यूनतम स्थान होता है। थोड़े समय के भीतर, पेड़ एक सुंदर, घने जंगल में विकसित होते हैं।
इस तकनीक से पौधों में तेजी से विकास होता है और बहुत कम समय में सघन कवरेज हो जाता है क्योंकि पौधों के बीच बहुत कम जगह होती है। कम समयावधि में, क्षेत्र एक स्वतंत्र पारिस्थितिकी तंत्र में विकसित हो जाता है।
तकनीक को पहली बार 1980 के दशक में दुनिया के सामने पेश किया गया था। तब से इसके कई अनुयाई और प्रशंसक हैं ।
दी गई तस्वीर में तीन फ्रेम हैं। पहला फ्रेम चेन्नई के कोट्टूरपुरम स्टेशन के आसपास के क्षेत्र को दर्शाता है। तस्वीर करीब 8 महीने पुरानी है। जैसा कि आप देख सकते हैं, यह क्षेत्र सड़ते हुए कचरे और निर्माण मलबे से भरा था।
नागरिक निकाय (एक क्षेत्र का नागरिक निकाय सड़क, स्वच्छता, आदि जैसे नागरिक सुविधाओं को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार संगठन है। गांव में, यह पंचायत होती है। एक छोटे शहर में, यह नगर पालिका है। एक बड़े शहर में एक या एक से अधिक नगर निगम हो सकते हैं) ने इस क्षेत्र को साफ किया और 40 देशी प्रजातियों के 2000 से अधिक पेड़ लगाए।
आपको शायद यकीन न हो, लेकिन दूसरा और तीसरा फ्रेम एक ही स्थान के हैं। आखिरी फ्रेम हमें दिखाता है कि यह क्षेत्र अब कैसा दिखता है।
कोट्टुरपुरम में प्रारंभिक सफलता के बाद, दूसरा मियावाकी वन वलसरवक्कम में लगाया गया है। मुगालिवक्कम में तीसरे जंगल का रोपण पहले ही शुरू हो चुका है।
इस तकनीक का उपयोग किसने और क्यों किया है?
भारत में, इस तकनीक को राज्यों और गैर सरकारी संगठनों द्वारा अपनाया गया है। चेन्नई में, मुगलिवक्कम में तीसरा जंगल, एक एनजीओ थुवाकम के सहयोग से लगाया जा रहा है, जो चेन्नई में मियावाकी जंगलों को बनाने की कोशिश कर रहा है। तेलंगाना सरकार ने भी शहरी पुनर्वनरोपण(Reforestation) के लिए 2019 में इस तकनीक का उपयोग किया था। शुभेंदु शर्मा, जिन्होंने पहली बार 2010 में उत्तराखंड में अपने घर के पीछे इस तकनीक का प्रयोग किया था, अब एक कंपनी चलाते हैं जिसने 10 देशों के 44 शहरों में मिनी-वन लगाए हैं।
0 comments:
Post a Comment