RCEP और १५ देशों के बारें में सब कुछ
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी पर हस्ताक्षर किए, भारत बाहर रहा
दिल्ली, नवंबर १६: २०१२ में १६ देशों ने एक दूसरे से बातचीत शुरू कि। वे दुनिया की सबसे बड़ी मुक्त व्यापर संधि करना चाहते थे।
इन १६ देशों में १० ASEAN देश (ब्रूनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओ, मलेशिया, म्यानमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, और वियतनाम), जापान, भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, कोरिया और नूज़ीलैंड शामिल थे।
नवंबर, २०१९ में भारत आरसीईपी समझौते से बाहर हो गया। भारत ने महसूस किया कि उसके मुद्दों को बाकी टीम के द्वारा सुना या संबोधित नहीं किया जा रहा है।
आज, शेष १५ देशों ने औपचारिक रूप से समझौते पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने उम्मीद जताई है कि आगे की चर्चा के लिए भारत वापस आए, और संभवतः समूह में सम्मिलित हो।
यह समझौता क्यों खास है?
इस समझौते का अगुआ चीन है। यह समझौता लगभग दुनिया की ३०% आबादी को कवर करता है और दुनिया के जीडीपी का ३०% है। ऐसे देश जो इस समझौते का हिस्सा हैं, वे अन्य सदस्य देशों से उत्पादों और सेवाओं पर कम कर का भुगतान करके कम कीमतों पर एक दूसरे से खरीद और बेच सकते है।
भारत क्यों इस समझौते से दूर रहा?
भारत का इस समझौते से बाहर निकलने के कई कारण है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण कारण है :
- भारत का चीन के साथ क्षेत्रीय युद्ध है। हाल के दिनों में, भारत ने चीनी निवेश, ऐप्स और अन्य उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया है। अगर भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है, चीनी उत्पाद भारत में आज़ादी से प्रवेश कर सकते हैं।
- इनमें से कई देश भारत की तुलना में बहुत सस्ती चीजों का उत्पादन करते हैं। इन देशों के उद्योगों के लिए बहुत सारे सस्ते उत्पादों को भारत में बेचना संभव है। इससे भारत के अपने उद्योग को नुकसान होगा।
- भारत का इस समूह के अधिकांश देशों के साथ व्यापार घाटा है। इसका मतलब है कि भारत इन देशों को निर्यात करने से ज्यादा सामान इन देशों से आयात करता है। उन्हें कम टैक्स (टैरिफ कहा जाता है) देने का मतलब है कि यह अंतर और भी बढ़ सकता है।
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